हिंदी कहानियां - भाग 58
| शतरंज के खिलाडी |
| शतरंज के खिलाडी | एक युवक ने किसी मठ के महंत से कहा मैं साधू बनना चाहता हूँ लेकिन एक समस्या ये है कि मुझे कुछ भी नहीं आता केवल एक चीज़ के और वो है शतरंज लेकिन शतरंज से मुक्ति तो नहीं मिलती और एक दूसरी बात जो मैं जानता हूँ वो ये है कि सभी प्रकार के आमोद प्रमोद के साधन जो है वो पाप है । इन दोनों बातों के अलावा मुझे कोई अधिक ज्ञान नहीं । इस पर महंत ने उस युवक से कहा ” हाँ वे पाप तो है लेकिन उन से मन भी बहलता है और क्या पता उस मठ को उनसे भी कोई लाभ पहुंचे । महंत ने शतरंज की एक बिसात बिछाई और युवक को शतरंज की एक बाजी खेलने को कहा । सब खेल शुरू होने वाला था महंत ने उस युवक को कहा कि देखो ” हम शतरंज की एक बाजी खेलेंगे और अगर मैं हार गया तो मैं इस मठ को हमेशा के लिए छोड़ दूंगा और तुम मेरा स्थान ले लोगे ।” युवक ने देखा महंत वास्तव में गंभीर था तो युवक के लिए अब ये बाजी जिन्दगी और मौत का सवाल बन गयी थी क्योंकि वो मठ में रहना चाहता था इसलिए उसे ये था कि मैं हार न जाऊ । युवक के माथे से दबाव साफ़ जाहिर हो रहा था और उसके माथे से पसीना भी चू रहा था । वंहा मौजूद सही लोगो के लिए अब ये शतरंज का बोर्ड पृथ्वी की धुरी की तरह हो गया था । महंत ने खराब शुरुआत की । युवक ने कई कठोर चले चली लेकिन उसने क्षण भर के लिए महंत के चेहरे को देखा । फिर जानबूझकर खराब खेलने लगा । अचानक ही महंत ने बिसात ठोकर मरकर जमीन पर गिरा दी । महंत ने कहा ” तुम्हे जितना सिखाया गया था तुम उस से कंही ज्यादा जानते हो । तुमने अपना पूरा ध्यान जीतने पर लगाया और अपने सपनों के लिए लड़ सकते हो । फिर तुम्हारे भीतर करूंणा जाग उठी और तुमने भले कार्य के लिए त्याग करने का निश्चय कर लिया ।” महंत के जारी रखते हुए कहा ” तुम्हारा इस मठ में स्वागत है क्योंकि तुम जानते हो कि कैसे अनुशाशन और करुणा में सामजस्य स्थापित किया जा सकता है इसलिए तुम कर सकते हो ।”